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दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान होते ही राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। तीनों प्रमुख पार्टियां बीजेपी, आप और कांग्रेस अब अपनी पूरी ताकत चुनाव प्रचार में झोंकेंगे। आप ने अपने प्रत्याशियों का एलान कर दिया है। कांग्रेस ने भी अपने कुछ कैंडिडेट्स की घोषणा कर दी है, लेकिन बीजेपी ने अभी तक उम्मीदवारों के नाम नहीं तय किए हैं।
कानून-व्यवस्था : आम लोगों की सुरक्षा व्यवस्था दिल्ली की सबसे प्रमुख चिंताओं में से एक है। २०१३ में दिल्ली में अपराध ९९ प्रतिशत तक बढ़ गए हैँ, जबकि पुलिस को क्राइम के सिर्फ ३० फीसदी मामले सुलझाने में ही सफलता मिली है। बीते कुछ सालों में दिल्ली महिलाओं के लिए सबसे अनसेफ शहर बनकर उभरी है। २०१४ में यहां रेप के दो हजार से अधिक मामले दर्ज हुए, जो २०१३ के मुकाबले ३० प्रतिशत ज्यादा हैं। २०१४ में स्नैचिंग की घटनाएं दोगुनी हो गई हैं, जिनमें से सिर्फ २५ फीसदी मामलों में आरोपियों को पकड़ा गया है।
वॉटर सप्लाई : केवल ४९ दिन तक सरकार चलाने वाली आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार ने अपने वादे के तहत हर दिल्लीवाली के लिए रोजाना ७०० लीटर मुफ्त पानी की सप्लाई की योजना शुरू की थी, लेकिन सरकार गिरने के बाद यह योजना बंद हो गई। दिल्ली हर रोज १७२ एमजीडी पानी की किल्लत झेलती है। द्वारका जैसे इलाकों में यह समस्या विकाराल रूप ले चुकी है, जहां लोगों को निजी टैँकर चालकों से पानी खरीदना पड़ता है।
बिजली : आप ने सत्ता में आने के बाद बिजली के बिल ५० फीसदी तक कम कर दिए थे। हालांकि अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के बाद बिजली बिलों पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म कर दिया गया। लोगों को तभी से बढ़े हुए बिजली के बिल देने पड़ रहे हैं। हालांकि केंद्र की एनडीए सरकार ने अब ४०० यूनिट तक बिजली का उपभोग करने वालों को सब्सिडी देना शुरू किया है। इस बार भाजपा ने बिजली के बिल घटाने का वादा किया है।
ट्रैफिक : दिल्ली में मौजूद १०० फ्लाईओवर्स में से कम से कम २५ बीते छह साल में बने हैं। इसी वजह से दिल्ली को फ्लाईओवर्स का शहर कहा जाने लगा है। इन छह सालों के दौरान शहर में ८०० किमी सड़क जुड़ गई हैँ। बड़ी संख्या में फुटओवर ब्रिज भी बने हैं। हालांकि इसके बावजूद भी दिल्ली की सड़कों पर ट्रैफिक जाम की समस्या से लोगों को निजात नहीं मिली है।
ट्रांसपोर्ट : बीते १२ सालों में दिल्ली मेट्रो शहर की लाइफलाइन बनकर उभरी है। हालांकि इस दौरान दिल्ली की जनसंख्या में भी काफी बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में मेट्रो सेवा में अभी और सुधार की जरूरत है। मेट्रो को शहर के आखिरी हिस्से तक जोड़ने की जरूरत है। साथ ही मेट्री फीडर सर्विस में भी काफी सुधार करना जरूरी है।
अवैध कॉलोनियां : दिल्ली के करीब ५० लाख लोग यानी राजधानी का हर तीसरा बाशिंदा अवैध कॉलोनी में रहता है। भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर १,९३९ अवैध कॉलोनियों को वैध करने का फैसला किया है। हालांकि इन अवैध कॉलोनियों में विकास कार्य कराना एक बड़ी चुनौती होगा। बड़ा सवाल यह भी है कि क्या इन कॉलोनियों में लोग प्रॉपर्टी की खरीद फरोख्त कर पाएंगे।
भ्रष्टाचार : आम आदमी पार्टी ने भ्रष्टाचार को प्रमुख मुद्दा बनाते हुए पिछला विधानसभा चुनाव लड़ा था। पार्टी ने लोगों से भ्रष्टाचार की शिकायत करने की अपील की थी और उनकी शिकायत के निवारण के लिए एक हेल्पलाइन भी जारी की थी। आप सरकार के गिरने के बाद दिल्ली पुलिस ने भी ऐसी ही एक हेल्पलाइन शुरू की। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस नीति अपनाने का फैसला किया है।
पार्किंग : पार्किंग दिल्लीवालों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है। शहर में पार्किंग के कारण होने वाली लड़ाइयां अब गंभीर रूप ले रही हैं। कई मामलों में लोगों की हत्या तक हो चुकी है। एक अनुमान के मुताबिक, दिल्ली की सड़कों पर रोजाना १४०० नई कारें आती हैं, लेकिन इनके बदले में नया पार्किंग प्लेस बनाने का काम काफी धीमा है। दिल्ली को हर साल ३१० फुटबॉल मैदानों के बराबर पार्किंग की जगह चाहिए।
महंगाई : पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में महंगाई एक बड़े मुद्दे के रूप में उभरकर सामने आई थी और यह अब भी लोगों की चिंता की कारण बनी हुई है। रोजमर्रा की जरूरत की चीजें खासतौर पर सब्जियों के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। शहर में कॉस्ट ऑफ लिविंग बढ़ती जा रही है, लेकिन आय में अधिक परिवर्तन नहीं आया है।
शिक्षा : युवा पैरंट्स के लिए अफोर्डेबल और क्वॉलिटी एजुकेशन एक बड़ा मुद्दा है। वैसे तो शहर में बड़ी संख्या में स्कूल मौजूद हैं, लेकिन लोग अपने बच्चे की पढ़ाई के लिए नामीगिरामी स्कूलों को ही प्राथमिकता देते हैं। ऐसे स्कूलों की संख्या काफी कम है। इससे पैरंट्स का अपने बच्चे का नर्सरी में एडमिशन कराना बड़ी चुनौती बन गया है। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति भी एक बड़ा मुद्दा है।
स्वास्थ्य : वैसे तो दिल्ली में काफी सरकारी और प्राइवेट अस्पताल हैं, लेकिन दिल्ली और आसपास के राज्यों से आने वाले मरीजों की वजह से यह संख्या भी कम पड़ती जा रही है। दिल्ली में हर १० हजार लोगों पर सिर्फ २.६ बिस्तर ही हैं और सरकारी अस्पतालों की बदहाल व्यवस्था के कारण ८० प्रतिशत लोगों को प्राइवेट अस्पताल में अपना इलाज कराना पड़ रहा है।
बेरोजगारी: २००३ से लेकर अब तक १० लाख से अधिक लोग रोजगार कार्यालय में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं, लेकिन करीब ११ हजार लोगों को नौकरी मिल पाई है। बेरोजगारी के अलावा, युवाओं का अपनी काबिलियत से कमतर काम करना भी एक प्रमुख मुद्दा है।
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